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…न आने वाले कल का इंतिजार करें

सोशल इश्‍यू
सोशल इश्‍यू
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15upd01
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खबर यह है कि अपने डीजीपी साहब बहुत खुश हैं। खुश होना भी चाहिए। मौका ही ऐसा है। आखिर यूपी पुलिस ‘मिर्ची बमÓ खरीदने जा रही है। ‘मिर्ची बमÓ का इस्तेमाल व्यवस्था के खिलाफ जब-तब सड़कों पर उतरने वाले लोगों पर किया जाएगा। दावा यह है कि इस बम के फटते ही लोगों को यह महसूस होगा कि जैसे उनकी आंख में मिर्च झोंक दी गई है। उनके पास आंख धोने के लिए घर भागने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं रहेगा और इस तरह पुलिस की खाकी वर्दी पर अनावश्यक बल प्रयोग का जो दाग लगा हुआ है, वह धुल जाएगा। ‘मिर्ची बमÓ की खरीद की खबर सुनी तो दिल को थोड़ा सुकून मिला कि चलो अपनी बहादुरी दिखाने को सीधे गोली चलाने की यूपी पुलिस की आदत पर कुछ न कुछ अंकुश लगेगा। किसी के घर में पुलिस की गोली से बेटे, पति या पिता की मौत का मातम तो नहीं मचेगा। लेकिन ‘मिर्ची बमÓ की खरीद के जश्न में यह फोटो जेहन में बार-बार कौंध रही है। वैसे पुलिस के चरित्र को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं लेकिन इस तरह का फोटो पहली बार अखबारों के पहले पन्ने पर देखने को मिला। यह दारोगा जी हैं। लखनऊ के एक थाने में तैनात थे। वह सिर्फ खुद नंगे नहीं हुए, बल्कि यूं समझ लीजिए कि उनके बहाने यूपी पुलिस के कपड़े उतर गए। बयान दर्ज करने के नाम पर एक महिला को किस तरह इस दारोगा ने बार-बार थाने बुलाया, फोन पर उसके साथ अश्लील बातें की और फिर एक रोज उसने थाना परिसर में ही उस महिला के साथ जो कुछ करना चाहा, वह बताने के लिए यह फोटो ही काफी है। वैसे अपने आईजी साहब कह रहे हैं कि यह दारोगा मंद बुद्धि का है, इस तरह की हरकत उससे जाने में नहीं, अनजाने में हो गई होगी लेकिन आईजी साहब के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि क्या मंद बुद्धि के किसी शख्स को दारोगा बनाए रखा जा सकता है? इस बात की क्या गारंटी कि अपनी ‘मंदबुद्धिÓ के चलते यह दारोगा न जाने किस रोज और कौन सी घटना को अंजाम दे बैठे? वैसे अगर यह दारोगा मंद बुद्धि का ही है तो फिर क्या उसने इस तरह की किसी घटना को अपने परिवार की किसी महिला के साथ अंजाम देने की कोशिश की? नहीं न? लेकिन बात आईजी साहब की है तो माननी ही पड़ेगी। लेकिन मई महीने की एक और घटना को जरा याद कीजिए। बदायूं जिले में एक लड़की अपने परिवार के एक बुजुर्ग के साथ एक दरगाह में दर्शन को आई थी। रात में सोते समय यूपी पुलिस के दो सिपाही उसे पकड़ कर ले जाते हैं और चौकी के अंदर उसके साथ बलात्कार करते हैं। मार्च महीने में झांसी की भी एक घटना मीडिया में सुर्खी बनी थी। चोरी के एक मामले में एक लड़के का नाम आया तो सम्बंधित थाने के एक सिपाही ने उसकी मां को यह कहकर थाने बुलाया है कि आओ, तुम्हारे लड़के को बचाने का कोई रास्ता निकालते हैं। वह गरीब महिला जब थाने पहुंची है, तो सिपाही ने उसके साथ बलात्कार किया। मुजफ्फर नगर में भी इसी महीने एक महिला ने सिपाही पर बलात्कार का इल्जाम लगाया है। कुछ घटनाओं का जिक्र इसलिए कि डीजीपी साहब, भीड़ को नियंत्रित करने को आप बेशक ‘मिर्ची बमÓ की खरीद कीजिए लेकिन अपने इन ‘बहादुरÓ पुलिस वालों की हरकतों पर लगाम लगाने को भी किसी ‘बमÓ का ईजाद जरूर कीजिए, वर्ना लोग थाने और पुलिस से उसी तरह डरने लग जाएंगे जैसे बीहड़ और डाकू एक समय खौफ का पर्याय हुआ करते थे। वैसे उम्मीद बख्शती खबर यह है कि पुलिस के चाल-चरित्र और चेहरे पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए डीजीपी को हुक्म सुनाया है कि वह थानों में चरित्रवान और ईमानदार पुलिसकर्मियों की तैनाती करे। हालांकि कोर्ट के इस आदेश पर तमाम पाठकों ने सवाल उठाया कि क्या ऐसा मुमकिन है क्योंकि इस आदेश पर अगर अमल हुआ तो थानों पर तो ताले ही लग जाएंगे? लेकिन करा भी क्या जा सकता है, सिवाय उम्मीद के। हालात पर निकुंज किश्वर का शेर और बात खत्म –
हम क्या करें जो अब इंतिजार न करें।
या यूं ही अपने दिल को बेकरार करें।।
उनका दावा है कि कल, आज से बेहतर होगा,
चलो, न आने वाले कल का इंतिजार करें।।
(ठ्ठड्डस्रद्गद्गद्वञ्चद्यद्मश.द्भड्डद्दह्म्ड्डठ्ठ.ष्शद्व)

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